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सभी एक समान हैं। |
पाने की जो थी उम्मीद, धुँदलाती सी जा रही हैं ।
आँखों को तो बस राह तकना आता हैं ,
परवाह तो मंज़िलों की है जिन्हें पाने की ज़बान उधारी जा रही हैं।
इंतज़ार की इन्तेहाँ तो रंग दिखाएगी ज़रूर
कुबड़े रस्ते पर चलना होना भी चाहिए मंजूर,
कभी कोई बूट छेनी से डर के कीमती नही बनता
इरादे हो गगनचुम्बी तो रस्ते की परवाह नही करता ।
ख्वाइशें तो ज़िन्दगी को एक मक़सद देते हैं
ख्वाइशें तो ज़िन्दगी को एक मक़सद देते हैं
कोई अंश कभी यूँ ही अशोका नहीं बनता ।
भूल जाते है हम अक्शर तरक्की की नशे में
अत्तीत के उन कठिनाइयों को, अर्चनों को! दुखो को!
चेहरे पे दिलाती थी हसीं जो कभी उन सकूँ के दो पलों को!
और क्यों भूल जाते है हम अक्शर अपने मुसीबत की उन हमसफ़र को
जिनसे ही वक़्त बदलने की उम्मीदे क़ायम थी!
दुआओं के दौर गर मुसीबतों में आती हैं, तो किसी की हाय भी तरक्की का साथी हैं।
भूल जाते है हम अक्शर तरक्की की नशे में
अत्तीत के उन कठिनाइयों को, अर्चनों को! दुखो को!
चेहरे पे दिलाती थी हसीं जो कभी उन सकूँ के दो पलों को!
और क्यों भूल जाते है हम अक्शर अपने मुसीबत की उन हमसफ़र को
जिनसे ही वक़्त बदलने की उम्मीदे क़ायम थी!
दुआओं के दौर गर मुसीबतों में आती हैं, तो किसी की हाय भी तरक्की का साथी हैं।
लालच की गठरी कुछ इतनी तेज़ी से भरती जा रही हैं
शकशियत पे शौहरत की ग्रहन छाती जा रही है,
इल्म तो सभी को है, मौत के बाद सब यहीं छूट जानी है,
रूह जन्नत और ज़िस्म ज़मीन में समानी हैं।
साथ जो शान और इज़्ज़त जानी है, होती अज़नबी सी जा रही है
एक ख्वाइश सीने में कुछ यु दबी सी जा रही हैं।।
शकशियत पे शौहरत की ग्रहन छाती जा रही है,
इल्म तो सभी को है, मौत के बाद सब यहीं छूट जानी है,
रूह जन्नत और ज़िस्म ज़मीन में समानी हैं।
साथ जो शान और इज़्ज़त जानी है, होती अज़नबी सी जा रही है
एक ख्वाइश सीने में कुछ यु दबी सी जा रही हैं।।
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