मैं रूम नंबर २०४ का स्टुडेंट जब बी अपने रूम की खिड़की से बाहर देखता हूँ, मैं देखता हूँ मेरी नई जिंदगी को मेरे कॉलेज में जहाँ मैं अपनी जिंदगी के सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य पूरा करने आया हूँ जहाँ मुझे बहुत अच्छे शिक्षक हमारे उपर काम करते हुए और हमे हीरे की तरह तराशने में लगे हुए है.जहाँ पे मैं अपनी जिंदगी के एहेम पल बीतने वाला हूँ और सभी शिक्षक और दोस्तों की मदद से एक उत्तीर्ण व्यक्तित्व बनने जा रहा हूँ. मैं रूम नंबर २०४ का स्टुडेंट जब भी अपने रूम की खिड़की के बहार देखता हूँ मैं देखता हूँ कॉलेज के मैदान को जहाँ सारे लड़के खेलते है और कभी मैं भी उसी मैदान मैं खेला करता था,जहाँ हम झगडा किया करते थे,मजाक किया करते थे,छोटी छोटी बातों पे अपने दोस्तों को धक्का दे कर उसी मैदान में भाग जाया करते थे.मैं रूम नंबर २०४ का स्टुडेंट जब भी अपने रूम की खिड़की के बाहर देखता हूँ मैं देखता हूँ सामने गिर्ल्स कॉलेज R.C.E.W जहाँ हर वक़्त आपको लड़कियां टहलते और मोबाइल को गालों पे लगाये मिल जाया करेगी.मैं देखता हूँ बोयस हॉस्टल के लड़कों को जो हर वक़्त उन लड़कियों को निहारते मिल जायेगे और अपने मोबाइल की स्क्रीन लड़कियों को दिखा के इशारा भी करते दिख जायेगे.
मैं रूम नंबर २०४ का स्टुडेंट जब भी अपने रूम की खिड़की के बाहर देखता हूँ,मैं देखता हूँ अपने अत्तित को,जहाँ मैंने बहुत मस्ती किया है और बिना घर पर बोले अपने दोस्तों के साथ घुमने निकल जाया करता था.रात को अँधेरे होने के बाद घर आने पर मम्मी का वोह डांटना और पापा को बोलने की बात कह कर डरना.मैं देखता हूँ झूट बोल कर क्रिकेट खेलने भागना और चोट लग जाने पर नए नए बहाने बनाना.गलती करना और गलतियों का न मानना,भाई से वोह छोटी छोटी बातों पे झगड़ना और जिद्द पकड़ लेना.
मैं रूम नंबर २०४ का स्टुडेंट जब भी अपने रूम की खिड़की के बाहर देखता हूँ,मैं देखता हूँ अपना स्कूल जहाँ मैं पढाई कम और दोस्तों के साथ मस्तियाँ ज्यादा किया करता था.वोह हर पेरिओद के बाद क्लास के बहार जाना और teachers का हर बार मना करना.होम वर्क कर के न जाना और जल्दी सुबह स्कूल पहुच कर दोस्तों के कॉपी से छापना.क्लास में शोर करना,तेअचेर्स की नक़ल उतरना.मैं देखता हूँ वो हर सुबह अच्छे से स्कूल के लिए तैयार होना और उसे (वो एक लड़की) देखना.मैं देखता हूँ लंच में डेस्क पर बैठ क तिफ्फिन खाना और लड़कियों के बैग से उनका तिफ्फिन भी गायब करना और पूछने पे दूध के धुले जैसे मासूम बन जाना.हर रोज़ स्कूल की छुट्टियों के बाद क्लास से दौड़ के भागना और बस में सीटें रोकना,भले ही दोस्तों के लिए सीटें रोकू या न उस एक लड़की के लिए सिट रोके रखना.
मैं देखता हूँ समय के साथ साथ वोह बचपन का दूर होना,पढाई से खुद को जोड़ना ,और अपने करियर के बारे में सोचना...
बोर्ड एक्साम्स के वक़्त पढाई करते करते सर में दर्द होने पे मम्मी का काफ्फी देना और हमारे साथ देर रात तक जागना.
मैं रूम नंबर २०४ का स्टुडेंट जब भी अपने रूम के खिड़की के बाहर देखता हूँ इस दुनिया को जिसने अपनी
वास्तविकता से ज्यादा रफ़्तार पकड़ ली है.हर छन बस आगे बढ़ने की चाहत हर किसी में बढ़ते जा रही है.मैं देखता हूँ यहाँ लोग एक दुसरे को नही पहचानते.इन्शान होने पे इन्शानियत को नही पहचानते.मैं देखता हूँ की लोग भागते है तो बस पैसे के पीछे,और पहचानते है तोह बस अपनी तरक्की को.मैं देखता हूँ की हम वैसे नही रहे जैसा हमे इस दुनिया में भेजा गया था.हम वोह काम नही कर रहे जिसे करने के लिए हमे इस दुनिया में भेजा गया था.
मैं रूम नंबर २०४ का स्टुडेंट जब भी अपने रूम की खिड़की के बाहर देखता हूँ मैं सोचता हूँ की मैं इस दुनिया को देखता ही क्यों हूँ जहाँ देखने लायक कुछ बचा ही नही है या यु बोलू की जहाँ कुछ देखने की भी आजादी नही है.मैं सोचता हूँ की मैं उन लोगों के बीच जिंदगी जी रहा हूँ जहाँ हर सांस के लिए भी संघर्ष करना जरुरी बन गया है.
मैं सोचता हूँ कभी तोह वो दिन आएगा जब लोग इस दुनिया को एक घर समझेगे और पूरी घर की चिंता करेगे न की अपने अपने कमरों की...
मैं सोचता हूँ वोह दिन कभी तो आएगा........कभी तो आएगा........यह रात कभी तो जाएगी और इस घने अँधेरे के बाद वोह जगमगाता सवेरा कभी तो आएगा...........
मैं रूम नंबर २०४ का स्टुडेंट जब भी अपने रूम के खिड़की के बाहर देखता हूँ..............
4 comments:
कभी अच्छी यादें, कभी बुरी यादें. यादें हमेशा याद आती है. कभी खिड़की से बाहर देखने पर तो कभी आँखें बंद किये हुए भी. इनका कोई ठिकाना नहीं होता, जब मन करता है तब आ जाती हैं. रूम नंबर २०४ की खिड़की से यादों के जो झड़ोखे तुमने दिखाए हैं, सच में अपनी यादें ताज़ा हो आई!
कभी अच्छी यादें, कभी बुरी यादें. यादें हमेशा याद आती है. कभी खिड़की से बाहर देखने पर तो कभी आँखें बंद किये हुए भी. इनका कोई ठिकाना नहीं होता, जब मन करता है तब आ जाती हैं. रूम नंबर २०४ की खिड़की से यादों के जो झड़ोखे तुमने दिखाए हैं, सच में अपनी यादें ताज़ा हो आई!
कभी अच्छी यादें, कभी बुरी यादें. यादें हमेशा याद आती है. कभी खिड़की से बाहर देखने पर तो कभी आँखें बंद किये हुए भी. इनका कोई ठिकाना नहीं होता, जब मन करता है तब आ जाती हैं. रूम नंबर २०४ की खिड़की से यादों के जो झड़ोखे तुमने दिखाए हैं, सच में अपनी यादें ताज़ा हो आई!
thank you anshu..हम हर लम्बा अपनी जिंदगी को ऐसे ही छोटे बड़े लम्हों क सहारे जीते है लेकिन कभी उन लम्हों अक्सर दरकिनार करते है और ऐसे पालो को जी नही पाते.लेकिन उस हर एक छोटी छोटी लम्हों में कुछ ऐसी बातें छिपी रहती है जो यादें बन जाती है.मैंने बस उन्ही छोटी छोटी लम्हों को अपने शब्दों में उतारा है और ये कोशिश किया है की मेरे इस पोस्ट के साथ सब अपने उन लम्हों को याद कर सके
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